ग्रीन टी में वैज्ञानिकों ने ऐसा खास तत्व खोजा जो इस जानलेवा बीमारी से बचा सकता है
सेहतराग टीम
ग्रीन टी में पाया जाने वाला एक खास एंटीऑक्सीडेंट, टीबी से लड़ने में कारगर हो सकता है। हाल में हुए शोध के अनुसार, ग्रीन टी को टीबी के इलाज के लिए एक सफलता के रूप में देखा जा रहा है। इसकी मदद से उन हजारों लोगों की जान बच सकती है, जो इस जानलेवा बीमारी की वजह से अपनी जान गंवा बैठते हैं।
पत्रिका 'साइंस रिपोर्ट्स' में प्रकाशित शोध के अनुसार, नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, सिंगापुर के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पौधे पर शोध किया और पाया कि इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कंपाउंड 'एपिगैलोकैटेचिन गैलेट या ईजीसीजी' एक तपेदिक से उत्पन्न बैक्टीरिया के तनाव को रोक सकता है। टीबी के लिए यह कंपाउंड एक एंजाइम बनाता है, जो कोशिकाओं को सेलुलर गतिविधि के लिए ऊर्जा देता है। यह कोशिकाओं को कमजोर बनाता है और इसके विकास को रोकता है, जो मानव कि शरीर में तपेदिक के विनाश की ओर जाता है।
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नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गेरहार्ड ग्रुबर ने कहा, हमारी खोज में हमने यह देखने की कोशिश की कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर्क्युलोसिस के विकास को रोकने के लिए ईजीसीजी कितनी प्रभावी है, इसके साथ ही ग्रीन टी में इस तरह के कंपाउंड की क्षमता कैसे बढ़ाई जा सके, जिससे कि इस बीमारी से निपटने के लिए नई दवाएं विकसित की जा सकें।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि कोशिकाओं को 'एडेनोसिन ट्राइफ़ॉस्फेट (एटीपी) सिंथेज़' एंजाइम से ऊर्जा मिलती है। इसलिए जब उन्हें विकास कार्यों को संसाधित करने की ऊर्जा नहीं मिलती है, तो वे नष्ट हो जाते हैं।
एडेनोसिन ट्राइफ़ॉस्फेट (एटीपी) सिंथेज़' को ट्रिगर करने वाले इस निष्कर्ष और कारकों को प्राप्त करने के लिए, शोधकर्ताओं की टीम ने माइकोबैक्टीरियम बोविस और मायकोबैक्टीरियम स्मेगमाटी का गहन अध्ययन किया। इनमें तपेदिक या टीबी पैदा करने वाले बैक्टीरिया के समान संरचनात्मक गठन होता है। उसके बाद, शोधकर्ताओं ने लगभग बीस यौगिकों का परीक्षण किया, जो एटीपी सिंथेज़ को प्रभावित करते हैं। केवल ईजीसीजी, जो कि हरी चाय में पाया जाता है वह टीबी कोशिकाओं को नष्ट करने में प्रभावी पाया जाता है।
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रिसर्च दल ने तपेदिक या टीबी के बैक्टीरिया से लड़ने के लिए ईजीसीजी की क्षमता और प्रभाव को देखने के बाद, अब एक ऐसी दवा तैयार करने की कोशिश कर रही है, जो दवा प्रतिरोधी तपेदिक को ठीक कर सकती है और इस घातक संक्रामक बीमारी के मामलों और मृत्यु को कम कर सकती है।
(साभार- दैनिक जागरण)
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